भारत के पास बाजार है दुनिया को घुटने के बल लाने को जिसे मोदी मुमकिन कर रहे हैं !

मोदी है तो मुमकिन है का यही राज है ! और आज मोदी तुरुप के इस पत्ते को इंटरनेशनल मार्किट में बखूबी चल रहे हैं कुछेक राइडर्स के साथ !
भारत कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीददार है तो ऐसे देश को कोई नाराज क्यूँ करना चाहेगा ? तभी तो अब सऊदी अरब ने पाकिस्तान से उधारी लौटाने को कहा है और तेल भी उधार पर देना रोक दिया है।हालाँकि चीन पाकिस्तान के कटोरे में डाल रहा है लेकिन वो कहावत है ना बकरे की अम्माँ कब तक खैर बनाएगी ! देरसबेर या तो पाक की समझ में आ जाएगा या फिर चाइना तौबा कर लेगा ! इसी बीच आईएमएफ से भी पाकिस्तान को ६ अरब डॉलर का मिलने वाला लोन ठंडे बस्ते में चला गया है। कश्मीर मुद्दे पर सऊदी अरब और यूएई ने पाकिस्तान के आवाज उठाने की अनदेखी की है और यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि खाड़ी की राजनीति बदली है आखिर तेल जो बेचना है ! फिर मोदी शासनकाल के पहले मुस्लिम तुष्टिकरण हावी था तो इन देशों की चल भी जाती थी। अब मोदी की नाराजगी कौन मोल ले ? और इसका हिंट तो मिल ही चुका था जब कश्मीर पर टिप्पणी करने के बाद भारत ने पाम ऑयल का आयात रोककर मलेशिया को उचित जवाब दे दिया था।
टीएन नाइनन ने बिज़नेस स्टैण्डर्ड में लिखा है कि भारत का बड़ा बाजार ही सबसे बड़ा हथियार है। मोबाइल फोन में विश्व बाजार में दूसरे नंबर का बाजार है भारत, तो सौर ऊर्जा उपकरणों के लिए तीसरा सबसे बड़ा बाजार है यह देश !हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश है भारत, तो फेसबुक और टिकटॉक जैसे उपभोक्ता आधारित कंपनियों के लिए भी सबसे बड़ा बाजार हैं हम।
दुनिया में ५वीं अर्थव्यवस्था होकर यह शक्ति भारत ने हासिल की है। चीन इस ताकत का इस्तेमाल दुनिया भर में करता रहा है। सीमा विवाद के मामले में भी भारत की इस भाषा को चीन समझने लगा है। तमाम टकरावों के बीच अमेरिका की नीति भारत के साथ सहयोग की रहने वाली है क्योंकि भारत हथियारों का बड़ा ख़रीदार है, इसी तरह तेल उत्पादक देश भारतीय प्रधानमंत्री का पलक पावड़े बिछाकर स्वागत करने को तैयार हैं क्योंकि वे पीएम मोदी को नाराज करना नहीं चाहते। रूस अब भी भारत का सबसे ज्यादा हथियारों की आपूर्ति कर रहा है।
भारत ने अपनी क्रयशक्ति का अब तक शायद ही इस्तेमाल किया है। इसकी वजह यह है कि मध्यवर्गीय उपभोक्ताओं का बाज़ार पहले इतना बड़ा नहीं था।
चीन लंबे समय से अपनी बाज़ार तक पहुंच की छूट देने के लिए दूसरे देशों को झुकने पर मज़बूर करता रहा है। हाल में उसने ऑस्ट्रेलिया के साथ ऐसा किया जबकि पहले वह फिलीपींस, बोलीविया और दूसरे देशों के साथ यह कर चुका है। उसने भारत से निर्यातों को भी व्यवस्थित रूप से हतोत्साहित किया है और भारत की टेक कंपनियों के लिए वहां काम करना मुश्किल कर दिया है। उसने ताकतवर देशों के साथ भी मनमानी की है क्योंकि जापानी, अमेरिकी, जर्मन कंपनियां चीन में अपने कारोबार पर काफी निर्भर रही हैं जबकि एपल, नाइके और वस्त्रों की कंपनियां चीनी सप्लायरों पर बुरी तरह निर्भर रही हैं।

चीन को जवाब देने के लिए भारत का सबसे इम्पोर्टेंट टूल बना है आत्मनिर्भरता का कैंपेन और उसमें बसुधैव कुटुंबकम का पुट देकर मोदी ने पूरी दुनिया को अपना मुरीद बना लिया है। मुख्य सेक्टरों में मैनुफैक्चरिंग में आत्मनिर्भरता पर ज़ोर देने की नरेंद्र मोदी की नई योजना अपने मकसद को पूरा कर सकती है या नहीं भी कर सकती है लेकिन यह चीन को वहां चोट पहुंचा रही है जहां उसे सबसे ज्यादा दर्द महसूस हो रहा है क्योंकि अमेरिका के बढ़ते दबाव और चीन के अंदर बढ़ती लागत के कारण निर्यात आधारित उसका मैनुफैक्चरिंग आधार पहले ही सिकुड़ने लगा है। हो सकता है इन सेक्टरों में मैन्युफैक्चरिंग की लागत बढ़ जाय ! ये भी होगा कि चीन दवाओं के रॉमटेरियल में मुश्किलें पैदा करेगा क्योंकि वह उनका प्रमुख सप्लायर है।फिर डिप्लोमेसी कहें या स्ट्रेटेजी इसी समय रूस , जिससे भारत खूब रक्षा सामाग्री खरीदता है , ने पाक पर लगी लम्बे समय से लगी रोक को हटाकर उसे हेलीकॉप्टर भेजे। आगे टैंक और मिसाइल भी भेज सकता है। रक्षा खरीद में पाकिस्तान भारत की बराबरी नहीं कर सकता चूँकि पैसा नहीं हैं।फैक्ट यही है कि मेक इन इंडिया में भारत जितना सफल होगा, उसे रूस की उतनी ही कम जरूरत पड़ेगी। साथ ही भारत को भी देखना होगा कि वह कैसे रूस के साथ अन्य क्षेत्रों में भी व्यापार बढ़ा सकता है चूँकि फिलहाल आपसी व्यापार मुख्यतः रक्षा क्षेत्र में ही है।
फिर एक और चिंता है ; सिवाय भूटान के सभी पडोसी देशों के साथ चाइना के रक्षा संबंध हैं , और भी पैठ वह बना चुका है।सो इन पडोसी देशों के लिए भारत का बाजार खोलना जरुरी हो जाता है यदि वहां की जनता का विश्वास अर्जित करना है तो ! कुल मिलाकर एक बैलेंस बनाकर चलने की चुनौती बड़ी है ! सीधी सी बात है ज्यादा और देर तक जारी रहने वाले नुकसानों पर तात्कालिक फायदों की बलि चढ़ानी ही होगी !
आसार अच्छे हैं पोस्ट कोरोना के ! भारत के मिडिल क्लास ने बाजार को उस ऊंचाई पर पहुंचा दिया है जिसमें भागीदारी के लिए हर देश उत्सुक है ! एफडीआई आल टाइम हाई ही नहीं, कोरोंना काल में भी मिल रहा है ! तेल निर्यातक देश भारत के प्रधानमंत्री को खुश रखने के लिए उन्हें अपने देश के ऊंचे राष्ट्रीय सम्मानों से विभूषित कर रहे हैं। इसी तरह, अमेरिका भी छोटी मोटी गीदड़भभकी देता तो है लेकिन फिर भारत के साथ खड़ा हो जाता है।आखिर भारत उसकी बोइंग जैसी कंपनियों को रक्षा उपकरणों की खरीद के लगातार ऑर्डर देता जो रहता है ! और वहां की टेक कंपनियों की बैकबोन बन चुके हैं इंडियंस ! क्या अद्भुत नजारा है यूएस में चुनाव होनेवाले हैं और दोनों प्रतिद्वंद्वी हर हाल में भारत के साथ खड़े रहने की घोषणा कर रहे हैं ! ऐसा कब देखने को मिलता है कि दूसरे देश के चुनाव में एक मुद्दा भारत के साथ होना भी हो ?